होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा का परिचय एंव शक्तिकरण का सिद्धान्‍त

 

                        अध्‍याय -3     

       होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा का परिचय एंव शक्तिकरण का सिद्धान्‍त

          किसी ने सत्‍य ही कहॉ है, आवश्‍यकता आविष्‍कार की जननी होती है । अपने समय के सफल एलोपैथिक चिकित्‍सक डॉ0क्रिश्चियन फेडरिक सैमुअल हैनिमन ने महसूस किया कि एलोपैथिक चिकित्‍सा जो विपरीत चिकित्‍सा विधान एंव अनुमान पर रह कर रोग उपचार किये जाने के सिद्धान्‍त पर आधारित है, इससे जो रोग है वह तो ठीक हो जाता है, परन्‍तु रोगी औषधियजन्‍य रोगों की चपेट में आ जाता है, और यही उसकी मौत का कारण बनती है, उनका मन  दु:ख से भर गया, उन्‍हे कई भाषाओं का ज्ञान था इसलिये उन्‍होने चिकित्‍सा विज्ञान की पुस्‍तकों के अनुवाद के कार्य को अपने जीवकापार्जन का साधन बना लिया था , चिकित्‍सा विज्ञान की पुस्‍तकों के अनुवाद करते समय एलोपैथिक मेटेरिया मेडिका में पढा कि सिनकोना कम्‍पन्‍न ज्‍वर अर्थात ठण्‍ड लग कर आने वाले बुखार को दूर करती है , और इसी के सेवन से कम्‍पन्‍न ज्‍वर उत्‍पन्‍न हो जाता है, अर्थात एक ही औषधि से दो प्रकार के विपरीत परिणमों ने उन्‍हे विचार करने पर मजबूर कर दिया, एक ही औषधि के दो विपरीत परिणमों ने एक नई चिकित्‍सा होम्‍योपैथिक के आविष्‍कार का सूत्रपात किया । हैनिमन सहाब ने सिनकोना के परिणामों का परिक्षण करने के उद्धेश्‍य से स्‍वयं सिनकोना का सेवन किया, इससे उन्‍हे कम्‍पन्‍न ज्‍वर उत्‍पन्‍न हो गया , और यही औषधि जब कम्‍पन्‍न ज्‍वर से ग्रसित मरीज को दिया गया तो वह ठीक हो गया, बस यही एक ऐसा सूत्र था, जिसने एक नई चिकित्‍सा पद्धति का श्री गणेश किया । चूंकि एक ही औषधि के सेवन से दो विपरीत परिणाम प्राप्‍त किये जा सकते थे ,जैसाकि अपने परिक्षण में हैनिमैन सहाब ने देखा कि सिनकोना देने से एक स्‍वस्‍थ्‍य व्‍यक्ति को कम्‍पन्‍न ज्‍वर हो जाता है और वही दवा एक कम्‍पन्‍न ज्‍वर से ग्रसित रोगी को दी जाती है तो उसका कम्‍पन्‍न ज्‍वर ठीक हो जाता है,  अर्थात एक स्‍वस्‍थ्‍य व्‍यक्ति को जो दवा दी जाती है उससे उसमें जो रोग के लक्षण उत्‍पन्‍न होते है, यदि वैसे ही लक्षण रोगी में उत्‍पन्‍न हो रहे हो तो वही उस रोग की दवा होगी । इसी परिक्षण क्रम में उन्‍होन बहुत सी औषधियों को स्‍वस्‍थ्‍य व्‍याक्तियों को दिया एंव जो लक्षण उत्‍पन्‍न हुऐ उसे लिपिवृद्ध करते गये, इस लिपिवृद्ध संगृह को मेटेरिया मेडिका कहॉ गया , तथा उसी प्रकार के लक्षणों के रोगी पर उसी प्रकार के मिलते जुलते लक्षणों की दवा देकर परिणामों का परिक्षण किया जो आशानुरूप थे । चूंकि जैसे रोगी में रोग के जैसे लक्षण हो यदि वैसे ही लक्षण स्‍वस्‍थ्‍य व्‍यक्तियों को दवा देने पर उभरते हो, तो वही उस रोगी की दवा होगी , अर्थात सम से सम की चिकित्‍सा का प्रथम सिद्धान्‍त का उन्‍होने प्रतिपादन किया एंव इस नई चिकित्‍सा का नाम होम्‍योपैथिक इसी सिद्धान्‍त के आधार पर रखा ।

होम्‍योपैथी शब्‍द दो शब्‍दों से मिलकर बना है, होमियोज और पैथी ,होमियोज ग्रीक भाषा का शब्‍द है जिसका अर्थ है सदृश या समान । पैथी का अर्थ विधान या उपचार ,अर्थात होमियोपैथी से तात्‍पर्य उस उपचार विद्या से है जो सदृश विधान पर आधारित हो , अर्थात होमियोपैथक चिकित्‍सा को सदृश विधान चिकित्‍सा ,सम से सम कि चिकित्‍सा आदि नामों से भी पुकारा जाता है । होम्‍योपैथिक में किसी रोग का उपचार न कर रोग लक्षणों का उपचार किया जाता है । इसलिये इस चिकित्‍सा पद्धति से कई ऐसे रोग जिन्‍हे आधुनिक चिकित्‍सा विज्ञान असाध्‍य कह कर छोड देता है, उन्‍हे एक सफल होम्‍योपैथिक चिकित्‍सक अपनी औषधियों से आसानी से ठीक कर देता है । हैनिमैन सहाब को प्रथम सूत्र प्राप्‍त हो गया था,  अब इसका दूसरा सूत्र, जो रोग उपचार या रोगी के शरीर में उत्‍पन्‍न लक्षणों को पूरी तरह से शमन कर सकती है वह औषधि की कैसी मात्रा या कौन सी शक्ति होगी । प्रारम्‍भ में उन्‍होने मूल अर्क (मदर टिचर ) का प्रयोग किया ,इसके सेवन से औषधि अपने गुणधर्म के अनुसार रोगी के शारीर में लक्षण सीमित समय में उत्‍पन्‍न कर देती थी , इसलिये उन्‍होन उसे तनुकृत कर शक्तिकृत करने के लिये प्रारम्‍भ में एक भाग मूल औषधि में नौ भाग अनौषधिकृत वस्‍तु (व्‍हीकल) को मिलाकर उसमें सौ झटके देने से 1-एक्‍स शक्ति की दवा प्राप्‍त हुई इसी 1-एक्‍स शक्ति में पुन: 9 भाग अनौषधिकृत (व्‍हीकल) को मिला कर आगे की शक्तिकृत दवाओं का आविष्‍कार करते गये, उन्‍होने महसूस किया कि मूल अर्क से शक्तिकृत दवाओं के परिणाम काफी संतोषप्रद एंव आशानुरूप थे , इस दशमिक क्रम के बाद उन्‍होने महसूस किया कि इससे भी उच्‍च शक्ति की औषधियों के परिणाम और भी अच्‍छे मिल सकते है अर्थात उन्‍होने शतमिक्रम शक्ति की दवाओं को बनाने के लिये एक भाग मूल औषधि में 99 भाग अनौषधिकृत वस्‍तु को मिला कर सौ झटके दिये ,इस शक्ति को उन्‍होने 1-सी पोटेंसी कहा इसी 1-सी शक्ति की एक भाग में 99 भाग अनौषधिकृत वस्‍तु को मिलाकर सौ झटके देने से आगे के क्रम तैयार होते गये, उन्‍होने प्रारम्‍भ में 30 शक्ति फिर 200 एंव 500 शाक्ति की औषधियॉ तैयार की जिसके परिणाम काफी उत्‍साहवद्धर्क प्राप्‍त होते गये, इन्‍ही परिणामों ने आगे चलकर उन्‍हे 50 मिलेसिमल शक्ति के लिये प्रेरित किया ।

  होम्‍योपैथिक के दो मूल सिद्धान्‍त जो इस चिकित्‍सा पद्धति का मूल आधार है डॉ0 हैनिमैन सहाब को प्राप्‍त हो चुके थे जो निम्‍नानुसार है ।

1-सम से सम कि चिकित्‍सा का सिद्धान्‍त

2-औधियों के शक्तिकरण का सिद्धान्‍त

1-सम से सम कि चिकित्‍सा का सिद्धान्‍त :- होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा का मूल सिद्धान्‍त है सम: सम शमयति [Similia Similibus Curenture] अर्थात रोगी के शरीर में जैसे लक्षण हो उसी प्रकार के लक्षणों को उत्‍पन्‍न करने वाली दवा ही उसके रोग की मूल औषधि होगी । यहॉ पर हम कुछ उदाहरणों से कुछ रोग लक्षणों एंव औषधियों की स्थिति को समक्षने का प्रयास करेगे । यहॉ पर एक वस्‍तु है मिर्ची जिसे होम्‍योपैथिक में केप्‍सिकम दवा के नाम से जानते है । इसके मूल रूप में सेवन करने पर मुंह में जलन होने लगती है , यह इस वस्‍तु का अपना धर्म गुण है ,परन्‍तु इसका दुसरा प्रभाव यह होता है कि सीने में जलन होने लगती है इसी प्रकार के लक्षणों में यदि रोगी को सीने में जलन हो तो उसकी दवा मिर्ची से बनी दवा कैप्‍सिकम होगी । इसी प्रकार दूसरी वस्‍तु है प्‍याज, होम्‍योपैथिक में प्‍याज से बनी दवा को एलियम सीपिया कहते है । प्‍याज को काटने पर या इसके मूल रूप में सेवन करने पर इसका भौतिक प्रभाव यह होता है कि ऑखों, व नॉक  से पानी आने लगता है कुछ जलन जैसी स्थिति भी उत्‍पन्‍न होने लगती है ,इस प्रकार के लक्षणों पर प्‍याज से बनी दवा एलियम सीपियॉ दवा का प्रयोग करना चाहिये , तम्‍बाखू भी एक वस्‍तु है एंव इससे भी होम्‍योपैथिक दवा टोबेकम बनाई जाती है । इसका प्रयोग यदि एक स्‍वस्‍थ्‍य व्‍यक्ति करे तो उसे घबराहट ,चक्‍कर तथा शरीर में पसीना आने लगता है यहॉ तक कि उसे उल्‍टी भी हो सकती है इसी प्रकार के मिलते जुलते लक्षणों पर टोबेकम दवा का प्रयोग किया जा सकता है चूंकि उक्‍त वनस्‍पतियों से बनी दवाओं या वस्‍तुओं के उदाहरण आप को होम्‍योपैथिक दवाओं के लक्षणों को समक्षने की सुविधा के अनुसार दिये गये है ,   होम्‍योपैथिक में इसी प्रकार की बहुत सी वस्‍तुऐ है जिसे पोटेंशराईड कर होम्‍योपैथिक दवाये बनाई जाती है । होम्‍योपै‍थिक दवाओं की संख्‍या सैकडों की संख्‍या में है जिसमें वनस्‍पतियों से लेकर धातु ,जान्‍विक ,किटाणुओं यहॉ तक कि प्राणीयों के शरीर के तत्‍वों, एलोपैथिक दवाओं,आयुर्वेदिक दवाओं,तथा रस रसायनों आदि से भी होम्‍योपैथिक दवाओं का निर्माण किया जा रहा है । भविष्‍य में होम्‍योपैथिक दवाओं की संख्‍या और भी बढ सकती है । यहॉ पर यह कहने में किसी प्रकार की अतिश्‍योक्ति नही होगी की भविष्‍य में इस बृहमाण्‍ड में जितनी भी वस्‍तुये है उनके प्राणी शरीर में उत्‍पन्‍न भौतिक लक्षणों के आधार पर रोग निवारण हेतु होम्‍योपैथिक दवाये बनाई जायेगी एंव जो रोग निवारण हेतु एक मील का पत्‍थर साबित होगे ।    

2-औधियों के शक्तिकरण का सिद्धान्‍त :- होम्‍योपैथिक  औधियों को शक्तिकृत करने के लिये मूलत: दो सिद्धान्‍त प्रचलन में है ,परन्‍तु डॉ0 हैनिमैन ने अपने अन्तिम समय में पचास हजारवी शक्तिक्रम का सिद्धान्‍त प्रतिपादित किया था जिसका प्रयोग बहुत ही कम चिकित्‍सकों द्वारा किया जा रहा है ।

(अ)दशमिक क्रम प्रणाली :- दशमिक क्रम प्रणाली की शक्तिकृत दवा वैसे तो विचूण के रूप में बनाई जाती है जिसमें एक भाग मूल औषधि में नौ भाग शुगर आफ मिल्‍क (अनौषधिकृत वस्‍तु, व्‍हीकल) को मिलाकर उस सौ बार खरल करने से 1-एक्‍स शक्ति की दवा बनती है , प्राप्‍त हुई इसी 1-एक्‍स शक्ति के एक भाग में पुन: 9 भाग अनौषधिकृत (व्‍हीकल) को मिला कर उसे सौ बार खरल करने से 2-एक्‍स शक्ति (पोटेंशि) की दवा तैयार की जाती है । इसी प्रकार 2-एक्‍स शक्ति की दवा के एक भाग को लेकर उसमें 9 भाग अनौषधिकृत वस्‍तु को मिलाकर सौ बार खरल करने पर 3-एक्‍स पोटेंशी की दवा तैयार होती है ,इसी प्रकार प्रत्‍येक आगे की शक्तिकृत दवाओं को बनाया जा सकता है । इस शक्तिकृम की दवाओं को दिन में तीन बार प्रयोग किया जा सकता है ।  

(ब)  शतमिक क्रम प्रणाली :- शतमिकक्रम शक्ति की दवाओं को बनाने के लिये एक भाग मूल औषधि में 99 भाग अनौषधिकृत वस्‍तु को मिला कर सौ झटके देने से 1-सी पोटेशी की दवा तैयार होती है , इस 1-सी शक्ति की दवा के एक भाग में 99 भाग अनौषधिकृत वस्‍तु को मिलाकर सौ झटके देने से 2-सी शक्ति की दवा तैयार होती है ,अब इस 2-सी के एक भाग में पुन: 99 भाग अनौषधिकृत वस्‍तु को मिला कर सौ झटके देने पर 3-सी शक्ति की दवा तैयार होगी , इसके आगे की पोटेंशी को बनाने के लिये उसके एक भाग को लेकर उसमें 99 भाग अनौषधिकृत वस्‍तु को मिलाकर सौ झटके देते जाने से आगे के क्रम तैयार होते जायेगे, इसे आप 30 शक्ति से लेकर  200 एंव 500 एंव सी0 एम0 एंव एम0 एम0 शक्ति की औषधियॉ तैयार कर सकते है । शतमिक क्रम की शक्तिकृत दवाओं का प्रयोग 30 पोटेंशी में दिन में तीन बार किया जाता है । 200 पोटेंशी की दवा का प्रयोग सप्‍ताह में एक बार तथा 500 (1-एम) शक्ति की दवा का प्रयोग पन्‍द्रह दिन में एक मात्र ,तथा इससे उच्‍च शक्ति का प्रयोग माह में एक बार एक मात्रा का प्रयोग किये जाने का विधान है, परन्‍तु यह चिकित्‍सकों के अनुभव व रोग स्थिति पर निर्भर करता कभी कभी हमने अपने अनुभवों में यह महसूस किया जिसमें कई रोगीयों को 200 या 1-एम शक्ति की दवा दो  या तीन तीन दिनों के अन्‍तर से एक मात्रा देने की आवश्‍यकता पडी । कई प्रकरणों में हमने रोगी के लक्षणों के अनुसार सुनिर्वाचित औषधिय की 200 पोटेंशी की दवा रोगी को दी और यह कहॉ कि जब तक आराम हो इस 200 शक्ति की दवा का प्रयोग न करे कुछ रोगीयों को दो दिन तो कुछ रोगीयों को तीन या चार दिन बाद रोग का पुन: आक्रमण हुआ, अत: उस रोगी को जिसके रोग का  आक्रमण जितने अंतराल से हुआ वही उस दवा की शक्ति उस रोगी के लिये उपयुक्‍त होगी । चिकित्‍सा कार्य अवधी में मैने महसूस किया कि उच्‍च से उच्‍चतम शक्तिक्रम की दवाओं का जो अन्‍तराल रोगी के औषधिय देने के बाद रोग दुबारा आक्रमण पर निर्भर करता है । इस अन्‍तराल व औषधिय की शक्ति के प्रयोग से यह बात तो स्‍पष्‍ट हो जाती है कि अलग अलग बीमारीयों में व रोगीयों में उच्‍च से उच्‍चतम शक्ति के अन्‍तराल का निधारण रोग व रोगी की स्थिति पर र्निभर करता है । यहॉ पर आप के मन में एक बात आ रही होगी कि इस तरह से उच्‍च से उच्‍चतम शक्ति की दवाओं को कब तक दोहराना चाहिये । तो यहॉ पर मै एक बात और भी स्‍पष्‍ट कर देना उचित समक्षता हूं जो चिकित्‍सा कार्य के दरबयान मैने महसूस किया है जैसे मैने किसी मरीज को र्दद की कोई दवा उच्‍च से उच्‍चतम शक्ति की दवा दिया उसका र्दद पहले दो दिन तक ठीक रहा दो दिन बाद उसे वही शक्ति की दवा दोहराई गयी इसका परिणाम यह हुआ कि उसने बतलाया कि उसका र्दद चार दिन बाद पुन: चालू हुआ पुन: उसी वही पोटेशी की दवा दोहराई गयी , इसके बाद वही रोगी कहता है कि इस बार उसका र्दद सात दिनों तक ठीक रहा ,पुन: वही दवा वही पोटेंशी में देने पर उसने कहॉ कि उसका र्दद एक माह तक ठीक रहा अर्थात दवा देने का अंतराल बढता चला गया और एक समय ऐसा आता है कि रोगी कहता है कि उसका र्दद तो पूरी तरह से ठीक हो गया यहॉ पर दो स्थिति स्‍पष्‍ट हो जाती है, एक तो दवा की शक्ति व अन्‍तराल, दुसरा उसी शक्तिक्रम की दवा को उसके द्वारा रोग आक्रमण के पुन: लौटने के अन्‍तराल को बढाते जाने से एक समय ऐसा आया जब रोग पूरी तरह से ठीक हो गया । अर्थात चिकित्‍सक को उच्‍च या उच्‍चतम शक्ति की दवा को देने के बाद रोग आक्रमण के अन्‍तराल को गंभीरता से समक्षना चाहिये बार बार दवा बदलने या पोटेंशी बदलते जाने से कभी कभी उचित परिणाम नही मिलते । 

(स) 50 मिलेसिमल पद्धति :- डॉ0 हैनिमैन सहाब ने अपने अन्तिम समय में 50 हजारवी शक्तिकृम की दवाओं के उपयोग का सिद्धान्‍त का प्रतिपादन किया था । 50 हजारवी शक्तिक्रम सिद्धान्‍त वह पद्धति है जिसमें होमियोपैथीक की दशमिक व शतमिकक्रम प्रणाली से भी अधिक कार्य करने की क्षमता होती है । होम्‍योपैथिक के आविष्‍कारक डॉ0हैनिमैन ने स्‍वयं जब होमियोपैथी का आविष्‍कार किया था ,तब इस बात की खोज की थी की मूल औषधियों की अपेक्षा शक्तिकृत दवाये तेजी से कार्य करती है बाद में अपने अन्तिम समय में उन्‍होने स्‍वयं आर्गेनन में इस 50 हजारवी शक्ति का उल्‍लेख किया था , चिकित्‍सकों के समक्ष कभी कभी कई ऐसी परिस्थितियॉ आ जाती है जब वे होमियोपैथिक के विधान के अनुसार रोग निदान हेतु सुनिर्वाचित औषधियों का प्रयोग करते है परन्‍तु अपेक्षित परिणाम नही मिलते , ऐसी स्थितियों में कभी कभी वे शतमिक क्रम प्रणाली की उच्‍चतम शक्ति 10 या सी0 एम0 , एम0 एम0 का भी प्रयोग करते है परन्‍तु लाभ नही होता । फिर इन उच्‍च से उच्‍चतम शक्तियों के साथ एक समस्‍या भी उत्‍पन्‍न हो जाती है कि इन शक्तियों को बार बार व जल्‍दी जल्‍दी दोहराया नही जा सकता ऐसी परिस्थितियों में चिकित्‍सक के समक्‍क्ष एक बडी समस्‍या खडी हो जाया करती थी । पचास हजार शक्ति क्रम की औषधियोंके साथ प्राय: यह समस्‍या उत्‍पन्‍न नही होती और इन औषधियों को आवश्‍यकता अनुसार व रोग स्थिति के अनुसार दोहराया जा सकता है इन दवाओं को दिन में दो या तीन बार अथवा कुछ मिनटों के अन्‍तर से भी दिया जा सकता है जबकि इस स्‍केल की दवाओं की शक्ति होमियोपैथी की शतमिक क्रम प्रणाली की शक्ति से 50 हजारवे क्रम में होती है व उच्‍चतम शक्ति होने के कारण इनमें द्रुत गति से कार्य करने की शक्ति होती है । इस पद्धति की दवाओं की शक्ति के संकेत 0/1, 0/2, 0/3 आदि स्‍केल में लिखी जाती है ।

अब प्रश्‍न यह उठता है कि रोगी को कौन सी पोटेंसी की दवा दी जाये, चूंकि उच्‍च से उच्‍चतम शक्ति की दवा लम्‍बे अंतराल से दी जाती है , कभी कभी चिकित्‍सा के मध्‍य ऐसी भी विषम परस्थितियॉ निर्मित हो जाती है जिसमें चिकित्‍सक को दो या तीन औषधियों का निर्वाचन करना पडता है ताकि रोग पर जल्‍दी काबू पाया जा सके , इस सर्न्‍दभ में डॉ0 डनहम का कथन है कि उच्‍च शक्ति रोग पर छोडी गई पिस्‍तौल की गोली की तरह है या तो वह रोग को निशाना बनाकर उसे नष्‍ट कर देती है या रोगी के बाजू से सनसनाती निकल जाती है अगर निशाना बैठा तो सिर्फ गोली नष्‍ट होती है रोगी को कोई नुकसान नही होता । वैसे देखा जाये तो जीवन शक्ति पर उसी दवा व शक्ति का प्रहार होता है जो रोग लक्षण जीवन शक्ति को प्रभावित किये होते है अन्‍य लक्षणो व शक्ति की दवा स्‍वयम निष्‍क्रिय हो जाती है इसका मूल कारण औषधियॉ मूल या भौतिक रूप में न हो कर वह सूक्ष्‍म शक्तिकृत रूप में होती है , सूक्ष्‍म शक्तिकृत औषधि सूक्ष्‍म जीवन शक्ति पर अपने सदृश्‍य लक्षणों पर प्रहार करती है । इसलिये चिकित्‍सक स्‍वयम अपने चिकित्‍सा कार्य के मध्‍य इस बात को अनुभव करता आया है ।

 

                         डायलुशन

      इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक में जो डायलुशन का प्रयोग किया जाता है वह होम्‍योपैथिक के पोटेंशी अर्थात शक्तिकरण के ही सिद्धान्‍त पर अधारित है, इसे तनुकरण का सिद्धान्‍त भी कह सकते है । जैसा कि होम्‍योपैथिक के अध्‍यय में हमने इसका विवरण करते हुऐ बतलाया है कि किसी भी वस्‍तु को मूल रूप से प्रयोग किया जाता है तो वह अपने गुणधर्म के अनुसार अपना प्रभाव दिखलाता है परन्‍तु जब हम उस वस्‍तु का मूल रूप में न देकर उसे तनुकृत करते है तो उसका मूल प्रभाव न हो कर उस वस्‍तु का जो प्रतिनिधित्‍व तत्‍व जो शक्तिकृत रूप में है उसका प्रभाव परिलक्ष्‍त होता है । यह मूल औषधि के प्रभाव से तीब्र होगा , परन्‍तु यहॉ पर इसका प्रभाव मूल लक्षणों को दमन करने का प्रभाव होगा जैसे र्मिच को यदि हम मूल रूप से ग्रहण करते है तो हमे मुंह में जलन तथा नांक ऑखों से पानी निकलने लगेगा परन्‍तु जब रोगी में यही लक्षण हो तो र्मिच से बनी दवा शक्तिकृत उसे दी जाये तो उसकी इस प्रकार के जलन में लाभ होगा । इसलिये इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक की दवाओं में प्रथम डायलूशन जो तीब्र होता है उसके देने से कभी कभी वह रोग जिसके लिये दवा दी जा रही है बढ जाती है , ऐसी अवस्‍था में चिकित्‍सक उसी दवा को जब इससे कुछ उॅचे डायलुशन में देता है तो वही बढा हुआ रोग ठीक हो जाता है । इसीलिये  इलै0 होम्‍योपैथिक चिकित्‍सक जब कभी धॉव आदि को फोडना हो व पस फारमेंशन चालू करना हो तो सी फोर को पहले डायलूशन में देते है यदि फोडे को सुखाना हो तो सी फोर को उचे डायलूशन में दे कर सुखा देते है यही सिद्धान्‍त रोग को बढाने व घटाने में डायलुशन का प्रयोग करना ही एक कला है जो चिकित्‍सकों को अपने अभ्‍यास में धीरे धीरे मालुम हो  जाता है । यहॉ पर हम बात इलै0 होम्‍यो0 डायलुशन की कर रहे है ।

इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक का शक्तिकरण का सिद्धान्‍त :- आप ने होम्‍योपैथिक के उदभव अध्‍याय में होम्‍योपैथिक दवाओं के शक्तिकरण का सिद्धान्‍त देखा इस में होम्‍योपैथिक दवाओं को जो वर्तमान में प्रचलन में है वह दो प्रकार के है इसमें पहला निम्‍न प्रकार  (अ) दशमिक क्रम प्रणाली :- इसमें एक भाग औषधी एंव नौ भाग अनऔषधीकृत वस्‍तु जैसे रेक्‍टीफाईड स्‍प्रिट को मिला कर सौ झटके दिये जाने पर 1X पोटेसी प्राप्‍त होती है फिर इसी 1X पोटेंसी का एक भाग ले कर, इसमें नौ भाग अनऔषधीकृत वस्‍तु मिलाने से 1X पोटेंसी प्राप्‍त होती है इसी प्रकार से आगे की पोटेसी बनाई जा सकती है ।

(ब)  शतमिक क्रम प्रणाली :- शतमिकक्रम शक्ति की दवाओं को बनाने के लिये एक भाग मूल औषधि में 99 भाग अनौषधिकृत वस्‍तु को मिला कर सौ झटके देने से 1-सी पोटेशी की दवा तैयार होती है , इस 1-सी शक्ति की दवा के एक भाग में 99 भाग अनौषधिकृत वस्‍तु को मिलाकर सौ झटके देने से 2-सी शक्ति की दवा तैयार होती है ,अब इस 2-सी के एक भाग में पुन: 99 भाग अनौषधिकृत वस्‍तु को मिला कर सौ झटके देने पर 3-सी शक्ति की दवा तैयार होगी , इसके आगे की पोटेंशी को बनाने के लिये उसके एक भाग को लेकर उसमें 99 भाग अनौषधिकृत वस्‍तु को मिलाकर सौ झटके देते जाने से आगे के क्रम तैयार होते जायेगे, इसे आप 30 शक्ति से लेकर  200 एंव 500 एंव सी0 एम0 एंव एम0 एम0 शक्ति की औषधियॉ तैयार कर सकते है ।                      

(ब)  अद्ध शतमिक क्रम प्रणाली :- इसमें हम एक भाग औष‍धी को लेते है इसमें 49 भाग अनौधीकृत वस्‍तु को मिला कर इसमें 50 झटके देने पर अद्धशतमिक क्रम की 1 पोटेसी की दवा तैयार होती है ।

      इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक में डॉ0 मैटी सहाब ने इसे, इस प्रकार से प्रतिपादित किया था, इसमें 1 भाग औषधी तथा 47 भाग अनऔषधीकृत (वस्‍तु जैसे रेक्‍टीफाईड स्‍प्रिट या इसके स्‍थान पर डिस्‍टील वाटर का भी प्रयोग किया जाता है इलै0 होम्‍योपैथिक चिकित्‍सक डिस्‍टील वाटर का ही प्रयोग करते है परन्‍तु पानी में बनाई गई औषधियों के जल्दी खराब होने की संभावना होती है ।) तथा 48 झटके देने पर प्रथम डायलुशन बनता है , इस प्रकार प्राप्‍त प्रथम डायलुशन के एक भाग में 47 भाग अनौषधीकृत वस्‍तु स्‍प्रिट या पानी मिलाने एंव 48 झटके देने पर दूसरा डायलुशन तैयार होगा फिर इस दूसरा डायलुशन का एक भाग औषधी में 47 भाग अनौषधीकृत वस्‍तु स्‍प्रिट या पानी मिलाने एंव 48 झटके देने पर तीसरा डायलुशन तैयार होता है इसी प्रकार से आगे के डायलुशन बनाये जाते है । इस प्रकार से डायलुशन या पोटेसी बनाई जाती है इसे ही तनुकरण करना भी कहते है । इससे जहॉ मूल औषधी तनुकृत होती जाती है परन्‍तु औषधी के प्रतिनिधी तत्‍व अपने मूल रूप में न हो कर शक्तिकृत रूप में होते है जिनका प्रभाव मूल औषधी से अधिक होता है । इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक में डायलुशन बनाने व रोगानुसार उपयेाग करने की विभिन्‍न प्रकार की बाते हो रही है परन्‍तु सत्‍यता यही है कि चाहे डायलुशन हो या पोटेसी आदि के भ्रम में न पडते हुऐ मूल सिद्धान्‍तों को समझना चाहिये एंव इसका उपयोग चाहे आप दसमिक ,शतमिक,या अर्द्ध शतमिक क्रम में करने परिणाम आप को बराबर मिलेगे और यह आप के अनुभवों पर र्निभर करता है   

 

 औषधियों का निर्वाचन :- इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक का मूल सिद्धान्‍त है रस व रक्‍त की समानता । जब रक्‍त व रस में समानता होती है तब मनुष्‍य स्‍वस्‍थ्‍य व दीर्ध जीवी होता है परन्‍तु जब भी रक्‍त व रस में असमानता होती है तो मनुष्‍य बीमार होने लगता है । अब प्रश्‍न उठता है कि ये रस व रक्‍त क्‍या है और इसकी समानता से क्‍या तात्‍पर्य है । तेा इस प्रश्‍न का जबाब सीध है रक्‍त को छोड शरीर में द्रव रूप में बहने वाले तरल ही रस है चाहे वे हमारे भोजन से प्राप्‍त डायजेस्‍टीव फूड हो या हड्डीयों के ज्‍वाईन्‍ट जैसे घुटनों के मोमेन्‍ट में उपयोग होने वाला तरल लिक्‍वेड या मुंह में लार , हार्मोन्‍स , आदि समस्‍त तरल पदार्थ ही रस है । चूंकि इस चिकित्‍सा पद्धती की यही खॉसियत है जो अन्‍य चिकित्‍सा पद्धतियों में शायद नही है । इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक केवल वनस्पितियों से बनाई जाती जो वनस्‍पतियॉ इसके निर्माण में उपयोग की गयी है उनकी सख्‍या केवल 114 है । इसमें एक मेडिसन में उपयोग की जाने वाली वनस्पितियों को इस प्रकार से सम्‍मलित किया गया है जो उस आर्गन के साथ अन्‍य उपयोगी कार्य प्रणाली में सहायक हो उन्‍हे भी प्रभावित करे व रोग उन्‍मूलन में सहायक हो साथ ही कुछ इस प्रकार की वनस्पितियों को भी मिश्रित इस उद्श्‍य से किया गया जैसे एक अंतरिक अंग के स्‍वाभाविक काम न करने से उससे सम्‍बधित अंन्‍य सिस्‍टम भी प्रभावित होते है उन्‍हे टारगेट कर सके एंव रक्‍त रस के शरीर में जो स्‍वाभाविक समानता होते है उसे बनाने में सहायक हो । इस चिकित्‍सा पद्धति में मूल केवल 38 औषधियॉ है , तथा मिश्रित 22 इस प्रकारसे इनकी कुल सख्‍या 60 हो जाती है । होम्‍योपैथिक में हजारों की संख्‍या में औषधियॉ है, इनमें से कौन सी औषधि रोगी को दी जाये यह एक बडी समस्‍या है । परन्‍तु इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक में यह समस्‍या नही है । यह चिकित्‍सा बहुत ही आसान एंव त्‍वरित परिणाम दिखलाने वाली है ।

                                            क्‍वान्‍टम थेवरी  

   

 क्‍वान्‍टम थेवरी :- जहॉ से भौतिक वस्‍तुओं का अस्तित्‍व समाप्‍त होने लगता है वहॉ से सूक्ष्‍म अर्थात क्‍वान्‍टम थैवरी का सिद्धान्‍त प्रारम्‍भ होने लगता है ।  यहॉ पर हमारे वस्‍तु शब्‍द का प्रयोग करने का तात्‍पर्य है चूंकि भौतिक वस्‍तु से है , जबकि अध्‍यात्‍म में दो प्रकार के अस्तित्‍व का विवरण है उनका मानना है कि हमारे शरीर में भौतिक शरीर तथा सूक्ष्‍म शरीर वि़द्यमान है । भौतिक वस्‍तु वह है जो दिखलाई देती है एंव समय के साथ उसका अस्तित्‍व नष्‍ट हो जाता है जबकि सूक्ष्‍म वस्‍तु का अस्तित्‍व समाप्‍त नही होता वह अपना रूप बदलती है । जिस प्रकार से भौतिक वस्‍तु का मान सख्‍यात्‍मक रूप से बढता है उसी प्रकार सूक्ष्‍म वस्‍तु की मात्रा जितनी कम होती जाती है उसका क्‍वान्‍टम मान सख्‍यात्‍मक रूप से बढता चला जाता है । जिस प्रकार से भौतिक वस्‍तुओं के सख्‍यात्‍मक मान से उसका आकलन किया जाता है ठीक उसी प्रकार से सूक्ष्‍म वस्‍तुओं के घटते क्रम के मान का संख्‍यात्‍मक आंकलन किया जाता है । भौतिक वस्‍तुओं का बढतें क्रम से उस वस्‍तु को धनात्‍मक वृद्धि के अनुसार र्दशाते है । परन्‍तु सूक्ष्‍म वस्‍तु के मान में उसकी संख्‍या को घटते क्रम के मान से दृशाते है ,परन्‍तु सूक्ष्‍म वस्‍तु के क्रम में उसकी संख्‍या को घटते क्रम के मान से दृशाते है भौतिक एंव सूक्ष्‍म एक के बढते क्रम एंव दुसरे के घटते क्रम को घनात्‍मक रूप से वृद्धि के क्रम में ही माना जायेगा ,जैसे यदि किसी बस्‍तु के भार में वृद्धि होती जाती है तो उसका संख्‍यात्‍मक मान बढता चला जाता है जैसे एक ग्राम से वह दो ग्राम फिर तीन ग्राम क्रमश: इसी प्रकार से बढती जाती है , ठीक इसी प्रकार से यदि किसी बस्‍तु का भौतिक अस्तित्‍व समाप्‍त हो कर वह जितनी सूक्ष्‍म होती जाती है, उसकी सूक्ष्‍मता का मान ठीक इसी प्रकार से कम होता जाता है ,परन्‍तु इस सूक्ष्‍म से अति सूक्ष्‍म वस्‍तु जो अब वस्‍तु नही रही बल्‍की इतनी सूक्ष्‍म हो गयी कि उसका अपना भौतिक अस्तित्‍व नही रहा परन्‍तु मात्र भौतिक अस्तित्‍व के न रहने से उसका अस्तित्‍व समाप्‍त नही हो जाता बल्‍की उसका अस्तित्‍व व उसके कार्य करने की क्षमता भौतिक वस्‍तु से कई गुना बढ जाती है । परमाणुवाद का सिद्धान्‍त एंव होम्‍योपैथिक की शक्तिकृत दवाये तथा आयुर्वेद के मर्दनम शक्ति आदि । क्‍वान्‍टम थैवरी पर अभी वैज्ञानिकों का शोध कार्य चल रहा है एंव उन्‍होने माना है कि भौतिक वस्‍तुओं को बार बार तोडने या उसे सूक्ष्‍म अति सूक्ष्‍म करने से वह अपने भौतिक शक्ति से भी अधिक शक्तिशाली हो जाती है । भविष्‍य में नाभीकिय क्‍वान्‍टम का सिद्धान्‍त रोग निवारण कि दिशा में एक नया अध्‍याय प्रारम्‍भ करेगी एंव रोग उपचार को एक नई दिशा देगी

1-भौतिक- भौतिक वस्‍तु व भौतिक क्रियाये वे है जो भौतिक रूप में होती है अर्थात जो दिखलाई देती है जिन्‍हे स्‍पर्श किया जा सकता है एंव भौतिक वस्‍तु एक निश्चित समय में समाप्‍त हो जाती है ।

2-सूक्ष्‍म वस्‍तु :- सूक्ष्‍म वस्‍तु या सूक्ष्‍म क्रियाये वे है जो सूक्ष्‍म होती है इतनी सूक्ष्‍म होती है जिन्‍हे देखा नही जा सकता अर्थात अभौतिक होती है ,इन्‍हे स्‍पर्श नही किया जा सकता अर्थात ये भौतिक न होकर सूक्ष्‍म अतिसूक्ष्‍म होती है । जैसे परमाणु विखण्‍डन का सिद्धान्‍त ।

  क्‍वान्‍टम थैवरी का सिद्धान्‍त ही सूक्ष्‍मता पर आधारित है अर्थात जब भौतिक रूप सूक्ष्‍म रूप में परिवर्तित होने लगती है वहॉ से क्‍वान्‍टम थैवरी का सिद्धान्‍त प्रारम्‍भ होता है । वस्‍तु जितनी सूक्ष्‍म होती जायेगी उसकी सूक्ष्‍म गणना उतनी आगे बढती जायेगी एंव उसमें मूल बस्‍तु की अपेक्षा कार्य करने की क्षमता अधिक होती जायेगी । सूक्ष्‍म वस्‍तु में भौतिक रूप न होते हुऐ भी वह कार्य की दृष्टि  से अतितीब्र होती है । क्‍वाटम भौतिक, स्‍ट्रीग थेवरी, आदि नेट पर वीडियों है आप इसे देख कर इस क्‍वाटम थैवरी को बहुत अच्‍छी तरह से समझ सकते है जहॉ से भौतिक वस्‍तुओं का विज्ञान खत्‍म होता है वहॉ से सूक्ष्‍म अतिसूक्ष्‍म का विज्ञान प्ररम्‍भ होता है ,जो होम्‍योपैथिक व इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक की दवाओं को शक्तिकृत करने में उपयोग की जाती है ।

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