अध्याय-21 कब्ज
अध्याय-21
कब्ज
क्र |
रोग |
औषधि |
1 |
कब्ज रहने पर |
नक्स वोमिका तथा सल्पर |
2 |
पुरानी कब्जियत |
हाईड्रैस्टिस केन |
3 |
सक्त कब्ज ,बहुत पुरानी कब्ज |
लैक डिफ्लोरेटम |
4 |
लैट्रिग जाने की इक्च्छा का न होना |
एलूमिना |
5 |
बार बार प्यास लगना एंव मल सूखने पर |
ब्रायोनिया |
6 |
लैट्रिग जाने की इक्च्छा का न होना, उघाई रहना |
ओपियम |
7 |
लैट्रिग जाने की इक्च्छा का न होना, स्नायविक शिथिलता |
प् |
अध्याय-21
कब्ज
आज की इस भाग दौड भरी जिन्दगी में उल्टा सीधा खाने व महनत न करने के कारण कई
प्रकार की बीमारीयॉ हो रही है उनमें से एक है कब्ज जिसमें स्वाभाविक तौर से व्यक्ति
समय पर खुल कर शौच नही जा पाता ।
1-कब्ज
रहने पर (नक्स वोमिका तथा सल्पर ) :- प्राय: कब्ज होने पर
होम्योपैथिक में नक्स सुबह तथा सल्फर सोने से पहले दिये जाने के निर्देश है इस
दवा को 30 पोटेंशी में लेना चाहिय तथा नक्स वोमिका को सुबह लेना चाहिये ।
2- पुरानी कब्जियत (हाईड्रैस्टिस केन) :-
डॉ0 सत्यवृत जी ने लिखा है कि इग्लैड के डॉ0 हुजेज का अनुभव है कि कब्ज में
हाईडैस्टिस , नक्स से भी अच्छा काम करती
है । उनका कथन है कि इस दवा के मूल अर्क की एक बूंद कई दिनों तक लेते रहने से कब्ज
में लाभ होता है ,इस दवा के पहले वह नक्स
वोमिका दिया करते थे ,परन्तु
अगर रोगी को सिर्फ कब्ज की ही शिकायत हो तो यह उसके कब्ज की सर्वौत्तम दवा है ।
इस दवा के लक्षणों में रोगी को ऐसा अनुभव होता है कि उसका पेट अन्दर की तरफ धंस
रहा है । इस सर्न्दभ में डॉ0 नैश का कहना है कि पुरानी कब्जियत में यह दवा
श्रेष्ट है । डॉ0 हैल का कहना है कि कब्ज में इस दवा को मूल अर्क या निम्न
शक्ति में देना चाहिये । परन्तु डॉ0 सरदार मल जैन होम्योसेवक व मैटेरिया मेडिका
के लेखक है उनका अनुभव है कि उन्होने
हाईड्रैस्टिस केन 200 शक्ति की दिन में दो बार देने से उन्हे बरसो पुरानी कब्ज
की रोगणी को ठीक किया था जो कब्ज की दवा खाते खाते थक चुकी थी । इस दवा की उच्च
शक्ति से उसके कब्ज में पूर्ण अराम हुआ । अत: रोग स्थिति के अनुसार इस दवा का
प्रयोग किया जा सकता है ।
3-सक्त कब्ज ,बहुत पुरानी कब्ज (लैक डिफ्लोरेटम):- बहुत
पुरानी एंव सख्त कब्ज इससे ठीक हो जाती है लैट्रिंग सख्त आती है इस दवा के
प्रयोग से लाभ होता है । इस दवा का प्रयोग 6 ,30 एंव 200 पोटेंसी में करना चाहिये ।
4-लैट्रिग जाने की इक्च्छा का न होना (एलूमिना):-
इसके रोगी को लैट्रींग जाने की इक्च्छा नही होती कई कई दिनों तक वह शौच नही जाता
जब तक लैट्रिंग इकठ्ठी नही हो जाती , उसे मल त्यागने के लिये काफी जोर लगाना पडता है ।
5-बार बार प्यास लगना एंव मल सूखने पर (ब्रायोनिया)- सूखेपन के कारण रोगी को बार बार प्यास का लगना , मल सूखा रोगी गर्म प्रकृति का हो इन अवस्था में ब्रायोनिया दवा का प्रयोग
किया जा सकता है इस दवा को ३० या २०० पोटेंसी में प्रयोग करना चाहिये ।
6-लैट्रिग जाने की इक्च्छा का न होना, उघाई रहना (ओपियम):-ब्रायोनिया
की तरह इसमें भी सूखापन पाया जाता है परन्तु इसके रोगी के समस्त अंगों में
पक्षाधात की सी शिथिलता पाई जाती है, आंत व पाचन संस्थान की गति शिथिल होती है । इसके रोगी में भय से उत्पन्न
दृष्य सामने बने रहते है,इसके
रोगी को उघाई रहती है । इस प्रकार की स्थिति में ओपियम दवा का प्रयोग किया जा सकता
है । यह दवा अफीम से बनाई जाने वाली दवा है इसका प्रभाव इस दवा को 30 या 200 शक्ति में प्रयोग करना
चाहिये ।
7-लैट्रिग जाने की इक्च्छा का न होना, स्नायविक शिथिलता (प्लम्बम मेटैलिकम):-
यह दवा सीसा से बनती है अत: जो लोग सीसा के सम्पर्क में
रहते है या पेंटिग आदि का काम करते है ,कब्ज के रोगी में आंतों में शिथिलता पाई जाती है जो ओपियम में भी पाई जाती है
परन्तु इसमें स्नायविक शिथिलता देखी जाती है यह शिथिलता का प्रभाव मन पर भी पडता
है रोगी को कुछ भी याद नही रहता ,इस
शिथिलता का प्रभाव आंतों पर भी होता है आंते शिथिल हो जाती है मल को बाहर धकेलने
की उसमें शक्ति नही होती आंतों में मल सूख जाता है ,सख्त कब्ज की यह उत्तम दवा है । इस दवा की 30 या 200 का प्रयोग आवश्यकतानुसार
किया जा सकता है ।
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