इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक डायलुशन

 

                    इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक डायलुशन

      इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक में जो डायलुशन का प्रयोग किया जाता है वह होम्‍योपैथिक के पोटेंशी अर्थात शक्तिकरण के ही सिद्धान्‍त पर अधारित है, इसे तनुकरण का सिद्धान्‍त भी कह सकते है । जैसा कि होम्‍योपैथिक के अध्‍यय में हमने इसका विवरण करते हुऐ बतलाया है कि किसी भी वस्‍तु को मूल रूप से प्रयोग किया जाता है तो वह अपने गुणधर्म के अनुसार अपना प्रभाव दिखलाता है परन्‍तु जब हम उस वस्‍तु का मूल रूप में न देकर उसे तनुकृत करते है तो उसका मूल प्रभाव न हो कर उस वस्‍तु का जो प्रतिनिधित्‍व तत्‍व जो शक्तिकृत रूप में है उसका प्रभाव परिलक्ष्‍त होता है । यह मूल औषधि के प्रभाव से तीब्र होगा , परन्‍तु यहॉ पर इसका प्रभाव मूल लक्षणों को दमन करने का प्रभाव होगा जैसे र्मिच को यदि हम मूल रूप से ग्रहण करते है तो हमे मुंह में जलन तथा नांक ऑखों से पानी निकलने लगेगा परन्‍तु जब रोगी में यही लक्षण हो तो र्मिच से बनी दवा शक्तिकृत उसे दी जाये तो उसकी इस प्रकार के जलन में लाभ होगा । इसलिये इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक की दवाओं में प्रथम डायलूशन जो तीब्र होता है उसके देने से कभी कभी वह रोग जिसके लिये दवा दी जा रही है बढ जाती है , ऐसी अवस्‍था में चिकित्‍सक उसी दवा को जब इससे कुछ उॅचे डायलुशन में देता है तो वही बढा हुआ रोग ठीक हो जाता है । इसीलिये  इलै0 होम्‍योपैथिक चिकित्‍सक जब कभी धॉव आदि को फोडना हो व पस फारमेंशन चालू करना हो तो सी फोर को पहले डायलूशन में देते है यदि फोडे को सुखाना हो तो सी फोर को उचे डायलूशन में दे कर सुखा देते है यही सिद्धान्‍त रोग को बढाने व घटाने में डायलुशन का प्रयोग करना ही एक कला है जो चिकित्‍सकों को अपने अभ्‍यास में धीरे धीरे मालुम हो  जाता है । यहॉ पर हम बात इलै0 होम्‍यो0 डायलुशन की कर रहे है ।

इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक का शक्तिकरण का सिद्धान्‍त :- आप ने होम्‍योपैथिक के उदभव अध्‍याय में होम्‍योपैथिक दवाओं के शक्तिकरण का सिद्धान्‍त देखा इस में होम्‍योपैथिक दवाओं को जो वर्तमान में प्रचलन में है वह दो प्रकार के है इसमें पहला निम्‍न प्रकार  (अ) दशमिक क्रम प्रणाली :- इसमें एक भाग औषधी एंव नौ भाग अनऔषधीकृत वस्‍तु जैसे रेक्‍टीफाईड स्‍प्रिट को मिला कर सौ झटके दिये जाने पर 1X पोटेसी प्राप्‍त होती है फिर इसी 1X पोटेंसी का एक भाग ले कर, इसमें नौ भाग अनऔषधीकृत वस्‍तु मिलाने से 1X पोटेंसी प्राप्‍त होती है इसी प्रकार से आगे की पोटेसी बनाई जा सकती है ।

(ब)  शतमिक क्रम प्रणाली :- शतमिकक्रम शक्ति की दवाओं को बनाने के लिये एक भाग मूल औषधि में 99 भाग अनौषधिकृत वस्‍तु को मिला कर सौ झटके देने से 1-सी पोटेशी की दवा तैयार होती है , इस 1-सी शक्ति की दवा के एक भाग में 99 भाग अनौषधिकृत वस्‍तु को मिलाकर सौ झटके देने से 2-सी शक्ति की दवा तैयार होती है ,अब इस 2-सी के एक भाग में पुन: 99 भाग अनौषधिकृत वस्‍तु को मिला कर सौ झटके देने पर 3-सी शक्ति की दवा तैयार होगी , इसके आगे की पोटेंशी को बनाने के लिये उसके एक भाग को लेकर उसमें 99 भाग अनौषधिकृत वस्‍तु को मिलाकर सौ झटके देते जाने से आगे के क्रम तैयार होते जायेगे, इसे आप 30 शक्ति से लेकर  200 एंव 500 एंव सी0 एम0 एंव एम0 एम0 शक्ति की औषधियॉ तैयार कर सकते है ।                      

(ब)  अद्ध शतमिक क्रम प्रणाली :- इसमें हम एक भाग औष‍धी को लेते है इसमें 49 भाग अनौधीकृत वस्‍तु को मिला कर इसमें 50 झटके देने पर अद्धशतमिक क्रम की 1 पोटेसी की दवा तैयार होती है ।

      इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक में डॉ0 मैटी सहाब ने इसे, इस प्रकार से प्रतिपादित किया था, इसमें 1 भाग औषधी तथा 47 भाग अनऔषधीकृत (वस्‍तु जैसे रेक्‍टीफाईड स्‍प्रिट या इसके स्‍थान पर डिस्‍टील वाटर का भी प्रयोग किया जाता है इलै0 होम्‍योपैथिक चिकित्‍सक डिस्‍टील वाटर का ही प्रयोग करते है परन्‍तु पानी में बनाई गई औषधियों के जल्दी खराब होने की संभावना होती है ।) तथा 48 झटके देने पर प्रथम डायलुशन बनता है , इस प्रकार प्राप्‍त प्रथम डायलुशन के एक भाग में 47 भाग अनौषधीकृत वस्‍तु स्‍प्रिट या पानी मिलाने एंव 48 झटके देने पर दूसरा डायलुशन तैयार होगा फिर इस दूसरा डायलुशन का एक भाग औषधी में 47 भाग अनौषधीकृत वस्‍तु स्‍प्रिट या पानी मिलाने एंव 48 झटके देने पर तीसरा डायलुशन तैयार होता है इसी प्रकार से आगे के डायलुशन बनाये जाते है । इस प्रकार से डायलुशन या पोटेसी बनाई जाती है इसे ही तनुकरण करना भी कहते है । इससे जहॉ मूल औषधी तनुकृत होती जाती है परन्‍तु औषधी के प्रतिनिधी तत्‍व अपने मूल रूप में न हो कर शक्तिकृत रूप में होते है जिनका प्रभाव मूल औषधी से अधिक होता है । इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक में डायलुशन बनाने व रोगानुसार उपयेाग करने की विभिन्‍न प्रकार की बाते हो रही है परन्‍तु सत्‍यता यही है कि चाहे डायलुशन हो या पोटेसी आदि के भ्रम में न पडते हुऐ मूल सिद्धान्‍तों को समझना चाहिये एंव इसका उपयोग चाहे आप दसमिक ,शतमिक,या अर्द्ध शतमिक क्रम में करने परिणाम आप को बराबर मिलेगे और यह आप के अनुभवों पर र्निभर करता है   

 

 औषधियों का निर्वाचन :- इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक का मूल सिद्धान्‍त है रस व रक्‍त की समानता । जब रक्‍त व रस में समानता होती है तब मनुष्‍य स्‍वस्‍थ्‍य व दीर्ध जीवी होता है परन्‍तु जब भी रक्‍त व रस में असमानता होती है तो मनुष्‍य बीमार होने लगता है । अब प्रश्‍न उठता है कि ये रस व रक्‍त क्‍या है और इसकी समानता से क्‍या तात्‍पर्य है । तेा इस प्रश्‍न का जबाब सीध है रक्‍त को छोड शरीर में द्रव रूप में बहने वाले तरल ही रस है चाहे वे हमारे भोजन से प्राप्‍त डायजेस्‍टीव फूड हो या हड्डीयों के ज्‍वाईन्‍ट जैसे घुटनों के मोमेन्‍ट में उपयोग होने वाला तरल लिक्‍वेड या मुंह में लार , हार्मोन्‍स , आदि समस्‍त तरल पदार्थ ही रस है । चूंकि इस चिकित्‍सा पद्धती की यही खॉसियत है जो अन्‍य चिकित्‍सा पद्धतियों में शायद नही है । इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक केवल वनस्पितियों से बनाई जाती जो वनस्‍पतियॉ इसके निर्माण में उपयोग की गयी है उनकी सख्‍या केवल 114 है । इसमें एक मेडिसन में उपयोग की जाने वाली वनस्पितियों को इस प्रकार से सम्‍मलित किया गया है जो उस आर्गन के साथ अन्‍य उपयोगी कार्य प्रणाली में सहायक हो उन्‍हे भी प्रभावित करे व रोग उन्‍मूलन में सहायक हो साथ ही कुछ इस प्रकार की वनस्पितियों को भी मिश्रित इस उद्श्‍य से किया गया जैसे एक अंतरिक अंग के स्‍वाभाविक काम न करने से उससे सम्‍बधित अंन्‍य सिस्‍टम भी प्रभावित होते है उन्‍हे टारगेट कर सके एंव रक्‍त रस के शरीर में जो स्‍वाभाविक समानता होते है उसे बनाने में सहायक हो । इस चिकित्‍सा पद्धति में मूल केवल 38 औषधियॉ है , तथा मिश्रित 22 इस प्रकारसे इनकी कुल सख्‍या 60 हो जाती है । होम्‍योपैथिक में हजारों की संख्‍या में औषधियॉ है, इनमें से कौन सी औषधि रोगी को दी जाये यह एक बडी समस्‍या है । परन्‍तु इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक में यह समस्‍या नही है । यह चिकित्‍सा बहुत ही आसान एंव त्‍वरित परिणाम दिखलाने वाली है ।

 

   

 क्‍वान्‍टम थेवरी :- जहॉ से भौतिक वस्‍तुओं का अस्तित्‍व समाप्‍त होने लगता है वहॉ से सूक्ष्‍म अर्थात क्‍वान्‍टम थैवरी का सिद्धान्‍त प्रारम्‍भ होने लगता है ।  यहॉ पर हमारे वस्‍तु शब्‍द का प्रयोग करने का तात्‍पर्य है चूंकि भौतिक वस्‍तु से है , जबकि अध्‍यात्‍म में दो प्रकार के अस्तित्‍व का विवरण है उनका मानना है कि हमारे शरीर में भौतिक शरीर तथा सूक्ष्‍म शरीर वि़द्यमान है । भौतिक वस्‍तु वह है जो दिखलाई देती है एंव समय के साथ उसका अस्तित्‍व नष्‍ट हो जाता है जबकि सूक्ष्‍म वस्‍तु का अस्तित्‍व समाप्‍त नही होता वह अपना रूप बदलती है । जिस प्रकार से भौतिक वस्‍तु का मान सख्‍यात्‍मक रूप से बढता है उसी प्रकार सूक्ष्‍म वस्‍तु की मात्रा जितनी कम होती जाती है उसका क्‍वान्‍टम मान सख्‍यात्‍मक रूप से बढता चला जाता है । जिस प्रकार से भौतिक वस्‍तुओं के सख्‍यात्‍मक मान से उसका आकलन किया जाता है ठीक उसी प्रकार से सूक्ष्‍म वस्‍तुओं के घटते क्रम के मान का संख्‍यात्‍मक आंकलन किया जाता है । भौतिक वस्‍तुओं का बढतें क्रम से उस वस्‍तु को धनात्‍मक वृद्धि के अनुसार र्दशाते है । परन्‍तु सूक्ष्‍म वस्‍तु के मान में उसकी संख्‍या को घटते क्रम के मान से दृशाते है ,परन्‍तु सूक्ष्‍म वस्‍तु के क्रम में उसकी संख्‍या को घटते क्रम के मान से दृशाते है भौतिक एंव सूक्ष्‍म एक के बढते क्रम एंव दुसरे के घटते क्रम को घनात्‍मक रूप से वृद्धि के क्रम में ही माना जायेगा ,जैसे यदि किसी बस्‍तु के भार में वृद्धि होती जाती है तो उसका संख्‍यात्‍मक मान बढता चला जाता है जैसे एक ग्राम से वह दो ग्राम फिर तीन ग्राम क्रमश: इसी प्रकार से बढती जाती है , ठीक इसी प्रकार से यदि किसी बस्‍तु का भौतिक अस्तित्‍व समाप्‍त हो कर वह जितनी सूक्ष्‍म होती जाती है, उसकी सूक्ष्‍मता का मान ठीक इसी प्रकार से कम होता जाता है ,परन्‍तु इस सूक्ष्‍म से अति सूक्ष्‍म वस्‍तु जो अब वस्‍तु नही रही बल्‍की इतनी सूक्ष्‍म हो गयी कि उसका अपना भौतिक अस्तित्‍व नही रहा परन्‍तु मात्र भौतिक अस्तित्‍व के न रहने से उसका अस्तित्‍व समाप्‍त नही हो जाता बल्‍की उसका अस्तित्‍व व उसके कार्य करने की क्षमता भौतिक वस्‍तु से कई गुना बढ जाती है । परमाणुवाद का सिद्धान्‍त एंव होम्‍योपैथिक की शक्तिकृत दवाये तथा आयुर्वेद के मर्दनम शक्ति आदि । क्‍वान्‍टम थैवरी पर अभी वैज्ञानिकों का शोध कार्य चल रहा है एंव उन्‍होने माना है कि भौतिक वस्‍तुओं को बार बार तोडने या उसे सूक्ष्‍म अति सूक्ष्‍म करने से वह अपने भौतिक शक्ति से भी अधिक शक्तिशाली हो जाती है । भविष्‍य में नाभीकिय क्‍वान्‍टम का सिद्धान्‍त रोग निवारण कि दिशा में एक नया अध्‍याय प्रारम्‍भ करेगी एंव रोग उपचार को एक नई दिशा देगी

1-भौतिक- भौतिक वस्‍तु व भौतिक क्रियाये वे है जो भौतिक रूप में होती है अर्थात जो दिखलाई देती है जिन्‍हे स्‍पर्श किया जा सकता है एंव भौतिक वस्‍तु एक निश्चित समय में समाप्‍त हो जाती है ।

2-सूक्ष्‍म वस्‍तु :- सूक्ष्‍म वस्‍तु या सूक्ष्‍म क्रियाये वे है जो सूक्ष्‍म होती है इतनी सूक्ष्‍म होती है जिन्‍हे देखा नही जा सकता अर्थात अभौतिक होती है ,इन्‍हे स्‍पर्श नही किया जा सकता अर्थात ये भौतिक न होकर सूक्ष्‍म अतिसूक्ष्‍म होती है । जैसे परमाणु विखण्‍डन का सिद्धान्‍त ।

  क्‍वान्‍टम थैवरी का सिद्धान्‍त ही सूक्ष्‍मता पर आधारित है अर्थात जब भौतिक रूप सूक्ष्‍म रूप में परिवर्तित होने लगती है वहॉ से क्‍वान्‍टम थैवरी का सिद्धान्‍त प्रारम्‍भ होता है । वस्‍तु जितनी सूक्ष्‍म होती जायेगी उसकी सूक्ष्‍म गणना उतनी आगे बढती जायेगी एंव उसमें मूल बस्‍तु की अपेक्षा कार्य करने की क्षमता अधिक होती जायेगी । सूक्ष्‍म वस्‍तु में भौतिक रूप न होते हुऐ भी वह कार्य की दृष्टि  से अतितीब्र होती है । क्‍वाटम भौतिक, स्‍ट्रीग थेवरी, आदि नेट पर वीडियों है आप इसे देख कर इस क्‍वाटम थैवरी को बहुत अच्‍छी तरह से समझ सकते है जहॉ से भौतिक वस्‍तुओं का विज्ञान खत्‍म होता है वहॉ से सूक्ष्‍म अतिसूक्ष्‍म का विज्ञान प्ररम्‍भ होता है ,जो होम्‍योपैथिक व इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक की दवाओं को शक्तिकृत करने में उपयोग की जाती है ।

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